मातृभूमि का ऋण आज मुझे भी चुकाना हैं, ऐ मेरे फौजी भाई तुझे आज गले से लगाना है।।
तुझ पर चली हर गोली और फैंके हुए पत्थर का जवाब दूँगा मै, कोई तेरा साथ दे ना दे पर साथ तेरे चलूँगा मैं।।
सही गलत का हिसाब करते होंगे ये आधुनिक साहित्यकार, मेरे लिए तो यही बहुत है कि तू लड़ता है जग से हमारे लिए बिना माने हुए कभी हार।।
भूल कर तेरी क़ुर्बानी ये दुनिया ना जाने किस ओर चली, भूल चले ये मदहोश सभी कि ये ख़ैरात की आज़ादी है कितनी लाशो के ढेरों से है हमे मिली।।
बंद कमरों में बैठ कर यूँ बाते करना तो बहुत आसान है, धूप, बारिश, सर्दी, अंधड़ इन सब से लड़ कर भी खड़े रह कर बताएं तब मैं मानु कि इन कलम के क्रांतिकारियों में भी कुछ जान है।।
मैं क्या ही दे पाउगा तुझे ऐ मेरे भाई, एक अनजान के लिए तूने है अपनी जान की बाज़ी जो लगाई।।
ना भूल तू ये कभी करना सोचने की के यहां सब तुझ से नफरत करते है, इस देश मे आज भी वो लोग ज़िंदा है जो खुद से ज्यादा इस देश से मोहब्बत करते है।।
मातृभूमि का ऋण आज मुझे भी चुकाना हैं, ऐ मेरे फौजी भाई तुझे आज गले से लगाना है।।